अवैध फिशिंग के प्रकार: भारत में आमतौर पर देखे जाने वाले ग़ैरकानूनी तरीके

अवैध फिशिंग के प्रकार: भारत में आमतौर पर देखे जाने वाले ग़ैरकानूनी तरीके

विषय सूची

डायनामाइट और विषाक्त रसायनों का उपयोग

भारत के कई हिस्सों में कुछ मछुआरे अवैध रूप से मछली पकड़ने के लिए डायनामाइट या विषाक्त रसायनों का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह की गतिविधियाँ न केवल कानून के खिलाफ हैं, बल्कि यह स्थानीय जल निकायों के पारिस्थितिक संतुलन को भी गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं। आमतौर पर, ये अवैध तरीके झीलों, नदियों और समुद्री तटों पर देखे जाते हैं जहाँ बड़ी मात्रा में मछलियों को एक साथ मारना आसान होता है। नीचे तालिका में डायनामाइट और विषाक्त रसायनों के उपयोग के प्रमुख प्रभाव दिखाए गए हैं:

अवैध तरीका मुख्य प्रभाव प्रभावित क्षेत्र
डायनामाइट का उपयोग तेज़ धमाके से बड़ी संख्या में मछलियों की मौत, जल जीवन को नुकसान नदी, झील, तटीय क्षेत्र
विषाक्त रसायनों का उपयोग पानी में ज़हर घुलने से सभी प्रकार की मछलियों व अन्य जीवों की मौत तालाब, नदी, छोटी जल धाराएँ

स्थानीय प्रभाव और समस्याएँ

डायनामाइट या ज़हरीले रसायनों का प्रयोग करने से न केवल मछलियाँ मरती हैं, बल्कि छोटे जलीय जीव, पौधे और आसपास रहने वाले पक्षी भी प्रभावित होते हैं। इससे पानी पीने योग्य नहीं रहता और खेती तथा स्थानीय समुदायों की आजीविका पर भी असर पड़ता है। इसके अलावा, जब जलीय जीवन असंतुलित हो जाता है तो प्राकृतिक भोजन चक्र टूट जाता है, जिससे आने वाले समय में मछलियों की संख्या घट सकती है। यह समस्या खासकर उत्तर प्रदेश, बंगाल, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कुछ इलाक़ों में अधिक देखी जाती है।

2. प्रजनन काल में मछली पकड़ना

क्या है प्रजनन काल में मछली पकड़ना?

भारत के कई हिस्सों में मछलियों का प्रजनन काल (स्पॉनिंग सीजन) वह समय होता है जब वे अंडे देती हैं और उनकी संख्या बढ़ती है। इस समय सरकार द्वारा फिशिंग पर प्रतिबंध लगाया जाता है ताकि मछलियों की आबादी संतुलित रहे। लेकिन कई जगहों पर लोग इस प्रतिबंध के बावजूद मछलियां पकड़ते हैं, जो अवैध माना जाता है।

प्रजनन काल में मछली पकड़ने से होने वाले नुकसान

समस्या विवरण
मछलियों की संख्या में गिरावट अंडे देने वाली मछलियों को पकड़ने से उनकी अगली पीढ़ी कम हो जाती है।
जलीय जीवन का असंतुलन मछलियों की कमी से नदी, तालाब और झील का इकोसिस्टम प्रभावित होता है।
कानूनी सजा का खतरा ऐसा करना कानूनन अपराध है और पकड़े जाने पर जुर्माना या जेल भी हो सकता है।
भारत में प्रजनन काल कब होता है?

भारत के अलग-अलग राज्यों में प्रजनन काल अलग-अलग महीनों में आता है, आमतौर पर मानसून के मौसम (जून से अगस्त) में यह समय अधिकतर जगहों पर रहता है। इस दौरान फिशिंग पर पूरी तरह रोक होती है। नीचे कुछ राज्यों के उदाहरण दिए गए हैं:

राज्य/क्षेत्र प्रजनन काल (प्रतिबंधित अवधि)
उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल जून – अगस्त
केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु मई – जुलाई
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान जुलाई – सितंबर

स्थानीय समुदायों की भूमिका

स्थानीय मछुआरा समुदायों को भी जानकारी दी जाती है कि वे इस दौरान फिशिंग न करें। कई जगहों पर पंचायतें और स्वयंसेवी संगठन मिलकर जागरूकता अभियान चलाते हैं ताकि अवैध फिशिंग रोकी जा सके। यदि सभी मिलकर नियमों का पालन करें तो मछलियों की आबादी को बचाया जा सकता है।

अवैध जाल और उपकरणों का इस्तेमाल

3. अवैध जाल और उपकरणों का इस्तेमाल

भारत में कई मछुआरे अपनी पकड़ बढ़ाने के लिए ऐसे जाल और उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं, जिनका उपयोग करना कानूनन मना है। विशेष रूप से छोटे जाले, महीन जाल (जैसे मोसक्विटो नेट या चुन्नी जाल), और कुछ प्रतिबंधित फिशिंग गियर आम तौर पर गैरकानूनी तरीके से इस्तेमाल किए जाते हैं। इनका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि इनमें छोटी और युवा मछलियां भी फंस जाती हैं, जिससे मछली प्रजातियों की संख्या घटने लगती है और भविष्य के लिए संसाधनों पर असर पड़ता है।

भारत में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले अवैध जाल

जाल/उपकरण का नाम विवरण गैरकानूनी कारण
महीन जाल (चुन्नी जाल) बहुत पतला और बारीक जाल, जिससे छोटी मछलियां भी फंस जाती हैं युवा मछलियों का शिकार, प्रजनन चक्र बाधित होता है
मच्छरदानी जाल (मोसक्विटो नेट) घरेलू मच्छरदानी को काटकर बनाया गया जाल सबसे छोटी मछलियां भी पकड़ी जाती हैं, पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ता है
इलेक्ट्रिक फिशिंग डिवाइस बैटरी या जनरेटर से पानी में करंट छोड़ना सभी प्रकार की मछलियों को मार डालता है, खतरनाक और गैरकानूनी
डायनामाइट या विस्फोटक पानी में विस्फोट करके मछलियां मारना पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक, पूर्णतः प्रतिबंधित

अवैध जाल के दुष्प्रभाव

  • मछली की आबादी तेजी से घटती है क्योंकि युवा व छोटी मछलियां नहीं बच पातीं।
  • प्राकृतिक प्रजनन चक्र में बाधा आती है।
  • स्थानीय समुदायों की आजीविका को दीर्घकालीन नुकसान होता है।
  • पारिस्थितिक तंत्र असंतुलित हो जाता है।

सरकारी नियम क्या कहते हैं?

भारत सरकार ने अलग-अलग राज्यों में कुछ प्रकार के जालों के आकार और डिजाइन पर रोक लगाई है। कई जगहों पर केवल एक निश्चित आकार का ही जाल इस्तेमाल करने की अनुमति होती है। अगर कोई व्यक्ति अवैध जाल या उपकरण का उपयोग करते हुए पकड़ा जाता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है। भारतीय मत्स्य विभाग लगातार जागरूकता अभियान भी चलाता रहता है ताकि लोग इन नियमों का पालन करें और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करें।

4. अनुमति के बिना या आरक्षित क्षेत्रों में मछली पालन

भारत में अवैध फिशिंग के कई तरीके हैं, जिनमें से एक सबसे आम तरीका है बिना उचित अनुमति के या संरक्षित जल क्षेत्रों में मछली पकड़ना। भारत सरकार और राज्य सरकारों ने कुछ जल क्षेत्रों को संरक्षित घोषित किया है, जहां मछली पकड़ने पर सख्त पाबंदी होती है। यह कानून विशेष रूप से उन क्षेत्रों में लागू होता है जहाँ दुर्लभ प्रजातियों की रक्षा या पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना जरूरी है।

आरक्षित क्षेत्र क्या हैं?

आरक्षित जल क्षेत्र वे स्थान होते हैं जिन्हें प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए सुरक्षित किया गया है। यहाँ किसी भी प्रकार की मछली पकड़ने की गतिविधि बिना सरकारी अनुमति के पूरी तरह प्रतिबंधित होती है।

आरक्षित क्षेत्र का नाम स्थान विशेषता
सुंदरबन डेल्टा पश्चिम बंगाल रॉयल बंगाल टाइगर और दुर्लभ मछली प्रजातियाँ
चिल्का झील ओडिशा प्रवासी पक्षी और स्थानीय मत्स्य जीवन संरक्षण
केरल बैकवाटर्स केरल प्राकृतिक इकोसिस्टम सुरक्षा

अनुमति क्यों जरूरी है?

बिना अनुमति के मछली पकड़ने से न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है, बल्कि इससे स्थानीय मछुआरों की आजीविका भी प्रभावित होती है। सरकार द्वारा दी जाने वाली अनुमति यह सुनिश्चित करती है कि फिशिंग सीमित मात्रा में और उचित सीजन में ही हो, जिससे जल जीवों की संख्या संतुलित रहे।

भारत में लागू प्रमुख नियम और कानून:

  • इंडियन फिशरीज एक्ट, 1897: इस अधिनियम के तहत आरक्षित क्षेत्रों में बिना लाइसेंस के मछली पकड़ना अपराध है।
  • स्थानीय राज्य कानून: हर राज्य अपने जल क्षेत्रों की सुरक्षा हेतु अलग-अलग नियम लागू करता है।
  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: जैव विविधता वाले क्षेत्रों में कड़ी निगरानी रखता है।
बिना अनुमति मछली पकड़ने के दुष्प्रभाव:
  • मछलियों की आबादी में कमी आना
  • जैव विविधता पर असर पड़ना
  • स्थानीय समुदायों की आजीविका संकट में पड़ना
  • पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न होना

इसलिए, भारत में बिना उचित अनुमति या संरक्षित जल क्षेत्रों में मछली पकड़ना एक गंभीर अवैध गतिविधि मानी जाती है और इसके लिए सख्त दंड का प्रावधान भी है। इन नियमों का पालन करना सभी नागरिकों की जिम्मेदारी है ताकि हमारी नदियाँ, झीलें एवं समुद्री क्षेत्र सुरक्षित रहें और आने वाली पीढ़ियाँ भी इन प्राकृतिक संसाधनों का लाभ उठा सकें।

5. ओवरफिशिंग और निर्धारित कोटे का उल्लंघन

भारत में अवैध फिशिंग के प्रकारों में सबसे आम है ओवरफिशिंग और निर्धारित कोटे का उल्लंघन। इसका मतलब है सरकार द्वारा तय सीमा से अधिक मछलियां पकड़ना या निर्दिष्ट कोटे से ज्यादा कैच करना। यह समस्या खासकर तटीय इलाकों, जैसे तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में देखी जाती है। जब मछुआरे तय सीमा से अधिक फिशिंग करते हैं, तो इससे समुद्री जीव-जंतुओं की संख्या तेजी से घटने लगती है और पूरे इकोसिस्टम पर बुरा असर पड़ता है।

ओवरफिशिंग कैसे होती है?

ओवरफिशिंग तब होती है जब:

  • सरकार द्वारा तय सीजन के बाहर भी फिशिंग की जाती है
  • मछलियों की प्रजातियों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता
  • छोटी या कम उम्र की मछलियां भी पकड़ ली जाती हैं
  • बड़े-बड़े ट्रॉलर और जालों का गलत इस्तेमाल होता है

सरकारी कोटे का उल्लंघन – एक नजर

क्षेत्र/राज्य निर्धारित कोटा (टन/वर्ष) अवैध पकड़ी गई मछलियां (अनुमानित)
गुजरात 1,20,000 1,50,000+
तमिलनाडु 80,000 1,00,000+
आंध्र प्रदेश 70,000 85,000+
केरल 60,000 75,000+
समुद्री जीवन पर असर

ओवरफिशिंग और कोटा उल्लंघन से न सिर्फ मछलियों की जनसंख्या घटती है बल्कि दूसरी प्रजातियां भी प्रभावित होती हैं। इससे स्थानीय मछुआरों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है और समुद्री खाद्य श्रृंखला भी टूट सकती है। भारत सरकार समय-समय पर नियम लागू करती रहती है लेकिन इनका पालन जरूरी है ताकि भविष्य में भी समुद्र से भोजन मिलता रहे।