भारत में अवैध फिशिंग को रोकने के कानूनी उपाय और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत में अवैध फिशिंग को रोकने के कानूनी उपाय और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

विषय सूची

1. भारत में अवैध मछली पकड़ने का संक्षिप्त इतिहास

भारत एक विशाल तटीय देश है, जहाँ सदियों से मछली पकड़ना जीवन और आजीविका का अहम हिस्सा रहा है। पारंपरिक रूप से, देश के तटीय क्षेत्रों और नदियों के किनारे रहने वाले समुदायों ने प्राकृतिक संसाधनों के साथ संतुलन बनाकर मछली पकड़ने की तकनीकें अपनाई थीं। लेकिन जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ी और मांग में इज़ाफा हुआ, वैसे-वैसे अवैध मछली पकड़ने (Illegal Fishing) की प्रवृत्ति भी बढ़ती गई।

ऐतिहासिक संदर्भ

प्राचीन काल में भारत में मछली पकड़ना पारिवारिक परंपरा थी। लोग हाथों से, जाल या छोटी नौकाओं से मछलियाँ पकड़ते थे। यह गतिविधि मुख्यतः स्थानीय खपत तक सीमित थी। 19वीं सदी में जब व्यापारिक मार्ग खुले, तब समुद्री उत्पादों का निर्यात शुरू हुआ और बड़े पैमाने पर मछली पकड़ने की शुरुआत हुई। इससे कुछ समुदायों ने पारंपरिक विधियों को छोड़कर आधुनिक और कभी-कभी अवैध तरीकों को अपनाना शुरू कर दिया।

पारंपरिक बनाम आधुनिक विधियाँ

विधि मुख्य विशेषताएँ पर्यावरणीय प्रभाव
पारंपरिक (जैसे हाथ से पकड़ना, छोटी नावें) स्थानीय उपयोग, सीमित मात्रा, पर्यावरण के अनुकूल बहुत कम नुकसान
आधुनिक (बड़े ट्रॉलर, फिशिंग नेट्स) बड़े पैमाने पर उत्पादन, समुद्र की गहराई तक पहुँचना समुद्री जीवन को नुकसान, ओवरफिशिंग की संभावना अधिक
अवैध विधियाँ (डायनामाइट, प्रतिबंधित नेट्स) तेजी से अधिक मछलियाँ पकड़ना, कानून विरुद्ध तकनीकें गंभीर पर्यावरणीय खतरा, जैव विविधता को नुकसान
भारत में अवैध मछली पकड़ने के उदय के कारण
  • समुद्री उत्पादों की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय मांग
  • स्थानीय लोगों को वैकल्पिक रोजगार की कमी
  • सरकारी निगरानी तंत्र का कमजोर होना
  • कुछ इलाकों में कानून लागू करने में कठिनाई
  • नई तकनीकों की उपलब्धता जिसने अवैध तरीके आसान बना दिए हैं

इन वजहों से अवैध मछली पकड़ना भारत के कई हिस्सों में बढ़ गया है। इससे न केवल समुद्री जीवन प्रभावित होता है बल्कि स्थानीय समुदायों की आजीविका भी खतरे में पड़ जाती है। इस विषय पर आगे के हिस्सों में कानूनी उपायों तथा सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

2. अवैध फिशिंग के प्रमुख कारण और इसकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि

मछुआरा समुदाय की भूमिका और जीविका का दबाव

भारत में मछुआरा समुदाय परंपरागत रूप से समुद्री संसाधनों पर निर्भर रहा है। बहुत से तटीय गाँवों में लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत मछली पकड़ना है। समय के साथ, समुद्र में मछलियों की संख्या कम होने लगी, जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़ गई और कई बार मछुआरे जीविका चलाने के लिए गैरकानूनी तरीकों का सहारा लेने लगे।

समुद्री संसाधनों का अत्यधिक दोहन

समुद्री जीवन पर लगातार बढ़ता दबाव अवैध फिशिंग का एक बड़ा कारण है। अत्यधिक मछली पकड़ने, बिना लाइसेंस या निर्धारित सीमा से बाहर जाकर फिशिंग करने जैसी गतिविधियाँ आम हो गई हैं। इससे समुद्र की जैव विविधता को नुकसान पहुंचता है और लंबे समय में मछुआरों की आजीविका भी खतरे में पड़ जाती है।

अवैध फिशिंग के मुख्य कारणों की समीक्षा

कारण विवरण
आर्थिक दबाव मछुआरों को परिवार चलाने के लिए अधिक मछली पकड़नी पड़ती है, जिससे वे नियमों की अनदेखी करते हैं।
सीमा विवाद कई बार भारत-पाकिस्तान या अन्य देशों की समुद्री सीमाओं को पार कर अवैध रूप से फिशिंग होती है।
नियंत्रण तंत्र की कमी नियामक एजेंसियों की कमजोर निगरानी और तकनीकी संसाधनों की कमी के कारण अवैध गतिविधियाँ बढ़ती हैं।
शिक्षा व जागरूकता की कमी मछुआरा समुदाय में पर्यावरण संरक्षण और कानूनी नियमों के प्रति जागरूकता कम होती है।
बिचौलियों और बाजार मांग बाजार में अधिक मांग होने पर बिचौलिए मछुआरों को अवैध फिशिंग के लिए उकसाते हैं।
सामाजिक-आर्थिक प्रभावों की झलक

अवैध फिशिंग से न केवल समुद्री जीवन को खतरा होता है, बल्कि इससे मछुआरा परिवारों की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित होती है। जो मछुआरे नियमों का पालन करते हैं, वे भी नुकसान उठाते हैं क्योंकि समुद्र में मछलियाँ कम होती जा रही हैं। इससे सामाजिक तनाव, बेरोजगारी और गरीबी जैसी समस्याएँ बढ़ सकती हैं। इन सब वजहों से अवैध फिशिंग को रोकने के कानूनी उपाय और सशक्त निगरानी व्यवस्था की जरूरत महसूस होती है।

भारत में मछली पकड़ने से संबंधित कानूनी ढांचा

3. भारत में मछली पकड़ने से संबंधित कानूनी ढांचा

राष्ट्रीय और राज्य स्तर के कानून

भारत में मछली पकड़ने को नियंत्रित करने के लिए कई राष्ट्रीय और राज्य स्तर के कानून बनाए गए हैं। इन कानूनों का उद्देश्य न केवल अवैध फिशिंग को रोकना है, बल्कि जलीय जीवन और मछुआरों के हितों की रक्षा करना भी है। सबसे प्रमुख राष्ट्रीय कानून “भारतीय मत्स्य अधिनियम, 1897” (Indian Fisheries Act, 1897) है, जो देशभर में लागू होता है। इसके अलावा, प्रत्येक राज्य ने अपनी भौगोलिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं के अनुसार विशेष नियम बनाए हैं।

प्रमुख राष्ट्रीय कानून और उनकी विशेषताएं

कानून का नाम लागू वर्ष मुख्य उद्देश्य
भारतीय मत्स्य अधिनियम, 1897 1897 अवैध मछली पकड़ने पर रोक, जल स्रोतों की सुरक्षा
समुद्री मत्स्य (विनियमन और विकास) अधिनियम, 1981 1981 समुद्री क्षेत्रों में फिशिंग गतिविधियों का नियमन
कोस्टल रेगुलेशन जोन नोटिफिकेशन, 2011 2011 तटीय क्षेत्रों की रक्षा और प्रबंधन

राज्य स्तर पर नियंत्रण उपाय

हर राज्य ने अपने स्थानीय मछुआरों की आवश्यकताओं और जल संसाधनों के अनुसार अलग-अलग कानून और नीतियां बनाई हैं। उदाहरण के लिए, केरल में “केरल इनलैंड फिशरीज एक्ट” लागू है तो वहीं महाराष्ट्र में “महाराष्ट्र फिशरीज एक्ट” लागू किया गया है। इन राज्यों में सीजनल बैन, लाइसेंसिंग सिस्टम, संरक्षित क्षेत्र घोषित करना आदि उपाय अपनाए जाते हैं।

राज्यों द्वारा अपनाए गए सामान्य नियंत्रण उपाय:
  • मछली पकड़ने का सीमित मौसम (सीजनल बैन)
  • फिशिंग लाइसेंस जारी करना और उसका सख्त पालन करवाना
  • अवैध जालों और तरीकों पर प्रतिबंध लगाना
  • संरक्षित क्षेत्र घोषित कर वहां फिशिंग पर रोक लगाना
  • मछुआरों को जागरूकता अभियान चलाकर सही तरीके बताना

कानूनों के पालन की चुनौतियां

हालांकि ये सभी कानून और नियंत्रण उपाय लागू किए गए हैं, लेकिन कई बार इनके पालन में दिक्कतें आती हैं। जैसे कि सीमावर्ती इलाकों में निगरानी की कमी, अवैध गतिविधियों की रिपोर्टिंग में देरी और स्थानीय लोगों की भागीदारी का अभाव। इसलिए सरकार समय-समय पर नीतियों को अपडेट करती रहती है और आधुनिक तकनीकों का सहारा लेती है। इससे अवैध फिशिंग को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

4. अवैध फिशिंग रोकने में सरकार और स्थानीय निकायों की भूमिका

केन्द्रीय सरकार की पहलें

भारत सरकार ने अवैध, अनियमित और अनियंत्रित (IUU) फिशिंग को रोकने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इसमें भारतीय समुद्री मत्स्य अधिनियम, तटीय सुरक्षा योजना और फिशिंग वेसल रजिस्ट्रेशन सिस्टम शामिल हैं। केन्द्रीय मत्स्य पालन विभाग नियमित रूप से समुद्री गश्त और मॉनिटरिंग करता है ताकि गैर-कानूनी गतिविधियों पर रोक लग सके। इसके साथ ही, मरीन पुलिस और भारतीय तटरक्षक बल भी निगरानी में अहम भूमिका निभाते हैं।

राज्य सरकारों द्वारा किये गए प्रयास

हर राज्य का अपना मत्स्य पालन विभाग होता है जो स्थानीय स्तर पर नियम लागू करता है। राज्यों ने अपनी सीमाओं के भीतर मत्स्य संसाधनों की सुरक्षा के लिए लाइसेंसिंग सिस्टम, बंद सीजन, न्यूनतम जाल आकार जैसे प्रावधान किए हैं। उदाहरण के लिए, केरल और तमिलनाडु में मोनोफिलामेंट नेट्स पर प्रतिबंध लगाया गया है ताकि अवैध पकड़ कम हो सके। कई राज्यों में सामुदायिक निगरानी समितियां बनाई गई हैं जो अवैध फिशिंग पर नजर रखती हैं।

पंचायत एवं ग्राम स्तर की भागीदारी

स्थानीय पंचायतें और ग्राम सभाएं मछुआरों को जागरूक करने, नियमों का पालन कराने और सामूहिक निगरानी में बड़ी भूमिका निभाती हैं। पंचायत स्तर पर बनी समितियां मछुआरों की समस्याओं को सुनती हैं तथा जरूरत पड़ने पर सरकारी अधिकारियों से संवाद स्थापित करती हैं। कई जगहों पर महिला स्वयं सहायता समूह भी फिशिंग संसाधनों की रक्षा में आगे आए हैं।

सरकारी एवं स्थानीय निकायों की प्रमुख पहलों का तुलनात्मक सारांश

स्तर मुख्य पहलें लाभ
केन्द्रीय सरकार समुद्री गश्त, लाइसेंसिंग, राष्ट्रीय नीति, तटरक्षक बल अंतरराष्ट्रीय सीमा सुरक्षा, कानून का सख्त पालन
राज्य सरकारें स्थानीय नियम, बंद सीजन, निगरानी समितियां प्रादेशिक संसाधनों की सुरक्षा, रोजगार संतुलन
पंचायत/स्थानीय निकाय जागरूकता अभियान, सामुदायिक निगरानी सीधे जमीनी स्तर पर प्रभावी नियंत्रण
जमीनी स्तर पर सफल पहलें

कुछ राज्यों में ‘को-ऑपरेटिव सोसाइटी’ मॉडल अपनाया गया है जिसमें मछुआरे खुद निगरानी रखते हैं और अवैध गतिविधियों की सूचना तुरंत प्रशासन तक पहुंचाते हैं। कर्नाटक और गुजरात के कुछ गांवों में GPS आधारित ट्रैकिंग सिस्टम लगाया गया है जिससे नावों की आवाजाही नियंत्रित रहती है। इन पहलों से न केवल अवैध फिशिंग कम हुई है बल्कि स्थानीय लोगों की आमदनी भी बढ़ी है।
इस प्रकार केंद्र, राज्य और स्थानीय निकाय मिलकर भारत में अवैध फिशिंग रोकने हेतु बहु-स्तरीय रणनीतियां अपना रहे हैं। यह सहयोग देश के समृद्ध मत्स्य संसाधनों की रक्षा में अहम भूमिका निभाता है।

5. आगे की राह–साथ मिलकर समाधान की आवश्यकता

स्थानीय समुदाय, सरकारी निकाय एवं अन्य हितधारकों का सहयोग

भारत में अवैध फिशिंग (गैरकानूनी मछली पकड़ना) एक बड़ा मुद्दा है, जिसे केवल सरकार या कानून से अकेले नहीं रोका जा सकता। इसके लिए स्थानीय मछुआरे समुदाय, सरकारी एजेंसियाँ, NGOs और निजी क्षेत्र सभी को मिलकर काम करना होगा। साथ मिलकर समाधान ढूंढने से यह समस्या जड़ से खत्म हो सकती है। नीचे कुछ संभावित रणनीतियाँ दी गई हैं:

संभावित रणनीतियाँ

हितधारक भूमिका संभावित गतिविधि/रणनीति
स्थानीय समुदाय रिपोर्टिंग और निगरानी अवैध गतिविधियों की सूचना देना, सामुदायिक निगरानी समूह बनाना
सरकारी निकाय (जैसे मत्स्य विभाग) नियमों का प्रवर्तन कानूनों का सख्ती से पालन कराना, गश्त बढ़ाना, आधुनिक तकनीक का उपयोग करना
NGOs और सामाजिक संगठन जागरूकता व शिक्षा मछुआरों को कानून की जानकारी देना, सतत मत्स्य पालन के तरीके सिखाना
निजी क्षेत्र/मत्स्य उद्योग उत्तरदायित्वपूर्ण व्यापार प्रथाएँ केवल कानूनी स्रोतों से ही मछली खरीदना, ट्रेसबिलिटी सिस्टम लागू करना

भविष्य की दिशा: तकनीक और सामुदायिक भागीदारी का महत्व

आगे बढ़ते हुए, ड्रोन और GPS जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करके अवैध फिशिंग पर नजर रखी जा सकती है। साथ ही, स्थानीय समुदाय को फैसलों में शामिल करना जरूरी है क्योंकि वे नदी या समुद्र की स्थिति को सबसे अच्छे से समझते हैं। इससे न केवल नियमों का पालन बेहतर होगा बल्कि मछुआरों की आजीविका भी सुरक्षित रहेगी।

इस प्रकार, जब सभी हितधारक मिलकर काम करते हैं, तो भारत में अवैध फिशिंग पर काबू पाना संभव है। सामाजिक जागरूकता, तकनीकी नवाचार और मजबूत कानून—इन सबका संतुलित तालमेल ही इस समस्या का स्थायी समाधान है।