राष्ट्रिय उद्यानों और अभयारण्यों में मछली पकड़ने की कानूनी सीमाएँ

राष्ट्रिय उद्यानों और अभयारण्यों में मछली पकड़ने की कानूनी सीमाएँ

विषय सूची

1. परिचय: भारत के राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में मत्स्य आखेट

भारत की विशाल जैव विविधता और जल संसाधनों से समृद्ध भूमि में राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों का विशेष महत्व है। यहाँ की नदियाँ, झीलें और जलाशय अनेक प्रकार की मछलियों के लिए प्राकृतिक घर हैं। सदियों से, यहाँ रहने वाले समुदायों के लिए मत्स्य आखेट (मछली पकड़ना) जीवन यापन, संस्कृति और परंपरा का हिस्सा रहा है। लेकिन समय के साथ जैव विविधता को संरक्षित रखने और मछली प्रजातियों की रक्षा करने के लिए कई नियम-कानून बनाए गए हैं।

आजकल, राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभयारण्यों में मत्स्य आखेट को लेकर कुछ कड़े दिशा-निर्देश हैं ताकि इन अनमोल संसाधनों का संतुलन बना रहे। चलिए, एक नजर डालते हैं कि कैसे ऐतिहासिक दृष्टि से यह गतिविधि महत्वपूर्ण रही है और वर्तमान समय में किन-किन कानूनी सीमाओं का पालन करना होता है।

भारत के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान व उनकी जल संपदा

राष्ट्रीय उद्यान/अभयारण्य मुख्य जल स्रोत प्रमुख मछली प्रजातियाँ
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (असम) ब्रह्मपुत्र नदी, छोटी झीलें रोहू, कतला, मागुर
सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान (पश्चिम बंगाल) डेल्टा क्षेत्र, खाड़ी पानी हिल्सा, टाइगर फिश
केरला के पेरियार टाइगर रिजर्व पेरियार झील महसीर, कैटफिश
रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान (राजस्थान) पद्मा तालाब, सूरवाल झील स्नेकहेड, ग्रास कार्प

ऐतिहासिक महत्व और बदलती परंपराएँ

भारत के ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक रूप से मछली पकड़ने की तकनीकें जैसे जाल डालना, कांटा फँसाना या बांस के बने उपकरणों का उपयोग किया जाता था। यह न केवल भोजन का जरिया था, बल्कि गाँव की मेल-मिलाप वाली गतिविधि भी थी।

समय के साथ जब संरक्षण की आवश्यकता महसूस हुई तो सरकार ने इन क्षेत्रों में मछली पकड़ने को नियंत्रित करना शुरू किया। आज अधिकांश राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में बिना अनुमति मछली पकड़ना अवैध है तथा कई जगह पूरी तरह प्रतिबंधित भी है। इसका मकसद वहाँ की प्राकृतिक आबादी और इकोसिस्टम को सुरक्षित रखना है।

आगे हम जानेंगे कि इन जगहों पर क्या-क्या कानूनी सीमाएँ लागू हैं और स्थानीय लोगों व पर्यटकों के लिए क्या नियम बनाए गए हैं। इस शांतिपूर्ण जल संसार में संतुलन बनाए रखने के लिए ये कदम कितने जरूरी हैं—इसकी समझ भी आपको इस श्रृंखला में मिलेगी।

2. मछली पकड़ने से संबंधित भारतीय कानूनी ढाँचा

भारत में राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों की सुंदर नदियाँ, झीलें और तालाब केवल प्राकृतिक सौंदर्य के लिए ही नहीं, बल्कि यहाँ की जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए भी प्रसिद्ध हैं। इन क्षेत्रों में मछली पकड़ना आमतौर पर प्रतिबंधित है या सख्त नियमों के अधीन होता है। यह सब भारतीय वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और विभिन्न राज्यों द्वारा बनाए गए संबंधित कानूनों के तहत आता है। आइए, एक नजर डालते हैं कि ये कानून किस तरह से राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में मत्स्य आखेट (मछली पकड़ना) को नियंत्रित करते हैं।

भारतीय वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधान

इस अधिनियम के तहत, राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में किसी भी प्रकार का शिकार, जिसमें मछली पकड़ना भी शामिल है, पूरी तरह से प्रतिबंधित है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि वहाँ की प्राकृतिक पारिस्थितिकी और जलजीव सुरक्षित रह सकें। किसी को भी बिना सरकार की स्पष्ट अनुमति के इन संरक्षित क्षेत्रों में मत्स्य आखेट करने की इजाजत नहीं होती। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वन्य जीवों और उनके आवास को संरक्षण देना है।

राज्य स्तरीय कानून एवं नियम

हर राज्य ने अपनी-अपनी परिस्थितियों और स्थानीय जरूरतों के अनुसार अतिरिक्त नियम बनाए हैं। उदाहरण के तौर पर:

राज्य विशेष प्रावधान दंड
महाराष्ट्र राष्ट्रीय उद्यानों में मछली पकड़ना पूरी तरह वर्जित जुर्माना/कारावास
उत्तराखंड कुछ खास अवधि में ही सीमित स्थानों पर अनुमति लाइसेंस रद्द/जुर्माना
केरल सिर्फ अनुसंधान या संरक्षण हेतु विशेष अनुमति पर छूट कानूनी कार्यवाही

स्थानीय समुदायों की भूमिका और सांस्कृतिक महत्व

भारत में कई समुदायों के लिए मछली पकड़ना जीवन यापन का साधन रहा है। लेकिन राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में यह परंपरा अब लगभग समाप्त हो गई है ताकि प्राकृतिक संतुलन बरकरार रखा जा सके। कुछ जगहों पर पारंपरिक त्योहारों या धार्मिक अनुष्ठानों में सीमित दायरे में और सरकारी निगरानी में यह छूट दी जाती है, लेकिन उसके लिए भी खास परमिट जरूरी होता है।

क्या करें और क्या न करें?
करें (Do’s) न करें (Don’ts)
सरकारी नियम पढ़ें और समझें बिना अनुमति मछली न पकड़ें
अगर रिसर्च या शिक्षा हेतु जाना हो तो परमिट लें स्थानीय गाइडलाइन की अनदेखी न करें
प्राकृतिक परिवेश का सम्मान करें कचरा फैलाकर जलजीवों को नुकसान न पहुँचाएँ

इन सरल निर्देशों का पालन करके हम भारत की अनोखी जल-जैव विविधता को सुरक्षित रख सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए उसे संजो सकते हैं। अगली बार जब आप किसी राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य के पास हों, तो उसकी शांत लहरों को देखकर बस मुस्कुराएँ—क्योंकि वहाँ मछलियाँ आज़ादी से तैर रही हैं!

अनुमतियाँ, प्रतिबंध और विशेष शर्तें

3. अनुमतियाँ, प्रतिबंध और विशेष शर्तें

क्या आपने कभी सोचा है कि भारत के राष्ट्रिय उद्यानों या अभयारण्यों में मत्स्य आखेट (मछली पकड़ना) इतना आसान क्यों नहीं होता? यहाँ की हर नदी, झील या जलाशय के अपने नियम हैं—और ये नियम सिर्फ कागज पर नहीं, बल्कि हर मछुआरे के अनुभव का हिस्सा बन जाते हैं। चलिए, जानते हैं कि अनुमति प्रक्रिया कैसी होती है, किन क्षेत्रों में प्रतिबंध लागू है, और स्थानीय प्रशासन द्वारा कौन-कौन सी खास शर्तें रखी जाती हैं।

अनुमति प्राप्त करने की प्रक्रिया

मत्स्य आखेट के लिए सबसे पहले आपको संबंधित वन विभाग या अभयारण्य के प्रशासन से आधिकारिक अनुमति लेनी होती है। यह प्रक्रिया राज्य दर राज्य थोड़ी भिन्न हो सकती है, लेकिन अधिकतर जगहों पर आपको निम्नलिखित दस्तावेज़ और जानकारी देनी पड़ती है:

आवश्यक दस्तावेज़ विवरण
पहचान पत्र आधार कार्ड, वोटर आईडी आदि
प्रार्थना पत्र मत्स्य आखेट की तिथि व स्थान उल्लेख करें
शुल्क रसीद अनुमति शुल्क का भुगतान प्रमाण

कुछ जगह ऑनलाइन फॉर्म भी उपलब्ध हैं, जिससे प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है। कई बार सामूहिक अनुमति भी मिल जाती है यदि आप गाइडेड टूर या लाइसेंस्ड समूह में जा रहे हों।

प्रतिबंधित क्षेत्र

भारत के लगभग सभी राष्ट्रिय उद्यानों और अभयारण्यों में कुछ क्षेत्र पूरी तरह से प्रतिबंधित रहते हैं। इन क्षेत्रों को कोर जोन (Core Zone) कहा जाता है जहाँ किसी भी प्रकार की मानवीय गतिविधि निषिद्ध है। वहीं बफर जोन (Buffer Zone) में सीमित गतिविधियों की अनुमति हो सकती है, वह भी प्रशासन की देखरेख में। नीचे तालिका में देखें:

क्षेत्र का नाम स्थिति मछली पकड़ने की अनुमति?
कोर जोन संरक्षित, मुख्य वन क्षेत्र नहीं
बफर जोन वन क्षेत्र के बाहरी हिस्से/मानव बस्तियों के करीब विशेष अनुमति के साथ संभव
परिसीमा क्षेत्र (Periphery) उद्यान/अभयारण्य की सीमाएँ स्थानीय नियमों अनुसार सीमित रूप से संभव

स्थानीय प्रशासन द्वारा निर्धारित प्रमुख नियम व शर्तें

  • केवल निर्दिष्ट उपकरण (जैसे पारंपरिक मछली पकड़ने की छड़ी) का प्रयोग करें; अवैध जाल या विस्फोटक सख्त वर्जित हैं।
  • मछली पकड़ने का समय प्रायः सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक ही रहता है। रात में मत्स्य आखेट पर रोक होती है।
  • कुछ विशिष्ट प्रजातियों (जैसे महसीर) को पकड़ने पर पूरी तरह रोक लगाई जाती है—यह जानकारी स्थानीय वन विभाग से लें।
  • साफ-सफाई बनाए रखें; प्लास्टिक या अपशिष्ट जलाशय में न डालें। इससे न केवल पर्यावरण सुरक्षित रहता है बल्कि स्थानीय जीव-जंतुओं को भी हानि नहीं पहुँचती।
  • प्रत्येक मछुआरे को प्रतिदिन अधिकतम कितनी मछलियाँ पकड़ी जा सकती हैं—इसकी सीमा प्रशासन तय करता है; इसका पालन करना जरूरी है।
  • अगर आप पहली बार ऐसे क्षेत्र में जा रहे हैं, तो स्थानीय गाइड या मत्स्य क्लब से मार्गदर्शन लेना हमेशा फायदेमंद रहता है। वे आपको न केवल नियम समझाते हैं बल्कि वहां की संस्कृति और कहानियों से भी परिचित कराते हैं!

मित्रो, नियमों का पालन करते हुए मछली पकड़ना न सिर्फ एक रोमांचक अनुभव देता है, बल्कि प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी भी दर्शाता है। अगली बार जब आप किसी राष्ट्रिय उद्यान या अभयारण्य में जाएं तो इन बातों का जरूर ध्यान रखें—और मजे लें एक यादगार मत्स्य यात्रा का!

4. स्थानीय संस्कृति और समुदाय की भूमिका

स्थानीय ग्रामीण और आदिवासी समुदायों का मत्स्य आखेट से संबंध

भारत के राष्ट्रिय उद्यानों और अभयारण्यों में मछली पकड़ना सिर्फ एक गतिविधि नहीं, बल्कि कई ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के जीवन का हिस्सा है। उनकी परंपरागत पद्धतियाँ, जैसे बांस की जाल, हाथ से मछली पकड़ना या प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग, वर्षों से चली आ रही हैं। इन तरीकों में पर्यावरण को कम नुकसान पहुँचता है और यह प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।

कानूनी सीमाएँ और पारंपरिक पद्धतियाँ: एक नजर

पारंपरिक मत्स्य आखेट पद्धति कानूनी नियम (राष्ट्रीय उद्यान/अभयारण्य) समुदाय पर प्रभाव
हाथ से मछली पकड़ना अक्सर प्रतिबंधित या सीमित जीविका पर असर पड़ता है
बांस या प्राकृतिक जाल का उपयोग कुछ क्षेत्रों में अनुमति, कई जगह पूर्ण प्रतिबंध परंपरा का संरक्षण मुश्किल
मौसमी मत्स्य आखेट (त्योहार या विशेष अवसरों पर) सीजनल प्रतिबंध लागू होते हैं सांस्कृतिक आयोजन प्रभावित होते हैं

स्थानीय लोगों की भूमिका संरक्षण में

स्थानीय समुदाय न केवल पारंपरिक ज्ञान के धनी हैं, बल्कि वे पर्यावरण की रक्षा भी करते हैं। जब उन्हें संरक्षण कार्यों में भागीदारी मिलती है, तो वे नियमों का पालन बेहतर ढंग से करते हैं। सरकार ने कई जगह सह-प्रबंधन मॉडल अपनाए हैं, जिससे समुदाय को जिम्मेदारी और अधिकार दोनों मिलते हैं। इससे न केवल जैव विविधता की रक्षा होती है, बल्कि उनकी आजीविका भी सुरक्षित रहती है।
एक उदाहरण देखें:

क्षेत्र/राज्य समुदाय की भागीदारी का तरीका
मध्यप्रदेश (कन्हा टाइगर रिजर्व) स्थानीय लोगों को निगरानी दल में शामिल किया गया, जिससे अवैध शिकार कम हुआ।
झारखंड (संरक्षित वन क्षेत्र) आदिवासी त्योहारों पर सीमित मत्स्य आखेट की अनुमति दी गई, सांस्कृतिक संरक्षण भी सुनिश्चित किया गया।
उत्तराखंड (कॉर्बेट नेशनल पार्क) मत्स्य आखेट पूरी तरह प्रतिबंधित; समुदाय को वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध कराया गया।

संवाद और सहयोग: आगे बढ़ने का रास्ता

समाज और सरकार के बीच संवाद जरूरी है ताकि स्थानीय संस्कृति का सम्मान बना रहे और कानूनों का पालन भी हो सके। इसी तालमेल से राष्ट्रिय उद्यानों और अभयारण्यों की सुंदरता तथा जैव विविधता सुरक्षित रह सकती है, और साथ ही ग्रामीण व आदिवासी समुदायों की खुशहाली भी बरकरार रह सकती है।

5. संरक्षण के महत्व और गैरकानूनी मत्स्य आखेट के प्रभाव

जल पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा क्यों ज़रूरी है?

भारत के राष्ट्रिय उद्यानों और अभयारण्यों में जल पारिस्थितिकी बहुत संवेदनशील होती है। यहाँ की नदियाँ, झीलें और तालाब केवल मछलियों का घर नहीं, बल्कि सैकड़ों अन्य जलीय जीव-जंतुओं और पौधों की जीवनरेखा भी हैं। जब अवैध मत्स्य आखेट (Illegal Fishing) होता है, तब यह संतुलन बिगड़ जाता है।

स्थानीय मत्स्य प्रजातियों पर प्रभाव

अवैध रूप से मछली पकड़ना अक्सर उन प्रजातियों को निशाना बनाता है जो पहले ही कम संख्या में हैं। इससे उनकी आबादी घट जाती है और कई बार विलुप्त होने का खतरा भी बढ़ जाता है। नीचे दिए गए तालिका में देखिए कि स्थानीय प्रजातियों पर क्या असर हो सकता है:

प्रभाव विवरण
प्रजनन में बाधा अवैध आखेट से मछलियाँ अंडे देने से पहले ही पकड़ ली जाती हैं, जिससे आने वाली पीढ़ी पर असर पड़ता है।
प्राकृतिक चयन में हस्तक्षेप कुछ चुनिंदा बड़ी या दुर्लभ मछलियाँ पकड़ी जाती हैं, जिससे जैव विविधता घटती है।
खाद्य श्रृंखला का टूटना जब कोई खास प्रजाति कम हो जाती है, तो उसके ऊपर और नीचे वाले जीवों पर भी असर पड़ता है।

अभयारण्य तंत्र पर अवैध मत्स्य आखेट के प्रभाव

अभयारण्य सिर्फ मछलियों के लिए नहीं बनाए जाते, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए होते हैं। जब कोई नियम तोड़कर अवैध रूप से मछली पकड़ता है, तो वह पूरी प्रणाली को नुकसान पहुँचाता है:

  • पानी की गुणवत्ता बिगड़ती है: अत्यधिक मछली पकड़ने से पानी में जैविक संतुलन बिगड़ता है।
  • अन्य जानवरों की परेशानी: मगरमच्छ, कछुए और पक्षियों जैसी प्रजातियाँ, जिनका भोजन मछलियों पर निर्भर करता है, उन्हें खाने की कमी हो सकती है।
  • पर्यटन पर असर: जब जल जीवन कम हो जाता है तो सैलानियों की संख्या भी घट जाती है, जिससे स्थानीय लोगों की आजीविका प्रभावित होती है।
संरक्षण क्यों जरूरी है?

अगर हम इन प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित नहीं रखेंगे तो आने वाली पीढ़ियाँ इनका आनंद नहीं ले पाएंगी। इसलिए, राष्ट्रिय उद्यानों और अभयारण्यों में कानूनी सीमाएँ बनाई गई हैं ताकि सभी प्रजातियाँ और उनका पर्यावरण सुरक्षित रह सके। अवैध मत्स्य आखेट न केवल कानून का उल्लंघन करता है, बल्कि पूरे जल पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डाल देता है। इसीलिए हमें नियमों का पालन करते हुए संरक्षण में अपना योगदान देना चाहिए।

6. पर्यटकों और मत्स्य प्रेमियों के लिए सुझाव

यदि आप भारत के किसी राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य में मछली पकड़ने का आनंद लेना चाहते हैं, तो यह जरूरी है कि आप वहाँ की कानूनी सीमाओं और नियमों का पालन करें। यहाँ कुछ मित्रवत सुझाव दिए गए हैं, जो आपके अनुभव को न केवल सुरक्षित बनाएँगे, बल्कि प्रकृति और स्थानीय समुदाय के प्रति आपकी जिम्मेदारी भी दर्शाएँगे।

राष्ट्रीय उद्यानों/अभयारण्यों में मछली पकड़ने वाले पर्यटकों के लिए व्यवहार संबंधी सुझाव

सुझाव विवरण
स्थानीय गाइड से सलाह लें स्थानीय गाइड्स को नियमों और जल जीवन की जानकारी होती है, उनसे सलाह लेना हमेशा फायदेमंद रहता है।
निर्धारित क्षेत्र में ही मछली पकड़ें केवल उन्हीं क्षेत्रों में मछली पकड़ें जहाँ इसकी अनुमति है, अन्यथा भारी जुर्माना लग सकता है।
संपत्ति का सम्मान करें पार्क की संपत्ति या जीव-जंतुओं को नुकसान न पहुँचाएँ, कचरा इधर-उधर न फैलाएँ।
स्थानीय भाषा और संस्कृति का सम्मान करें मछली पकड़ने के दौरान स्थानीय लोगों से संवाद करते समय उनकी भाषा (जैसे हिंदी, बंगाली, मलयालम आदि) का उपयोग करने की कोशिश करें। यह आपकी मित्रता और सम्मान को दर्शाता है।
पर्यावरण-अनुकूल उपकरण इस्तेमाल करें ऐसे हुक, लाइन या बायोडिग्रेडेबल सामग्री का प्रयोग करें जिससे पानी और जीव-जंतु सुरक्षित रहें।
“Catch and Release” नीति अपनाएँ जहाँ संभव हो, मछलियों को पकड़ने के बाद उन्हें वापस पानी में छोड़ दें ताकि जैव विविधता बनी रहे।
अनुमति पत्र साथ रखें मछली पकड़ने के लिए आवश्यक परमिट या लाइसेंस अवश्य रखें; निरीक्षकों द्वारा पूछे जाने पर दिखाएँ।
शोरगुल से बचें तेज आवाज़ या शोर करने से जल जीवन परेशान हो सकता है, इसलिए शांत रहना बेहतर है।
समय का ध्यान रखें कुछ उद्यानों में मछली पकड़ने के निश्चित समय होते हैं; इनका पालन करना जरूरी है।
स्थानीय व्यंजन चखें लेकिन संतुलन रखें अगर स्थानीय बाजार से मछली खरीदनी हो तो वहाँ की ताजगी और स्वाद का आनंद लें पर अत्यधिक शिकार से बचें।

भारतीय संदर्भ में कुछ आम शब्दावली (Glossary)

शब्द (Word) अर्थ (Meaning)
मत्स्यपालन (Matsyapalan) Fisheries/Fish farming activities
पर्यटक (Paryatak) Tourist
गाइड (Guide) A local expert to assist tourists
अभयारण्य (Abhayaranya) Sanctuary
राष्ट्रीय उद्यान (Rashtriya Udyan) National Park

दोस्ताना यात्रा अनुभव के लिए याद रखने योग्य बातें:

  • “जीवन का आदर करें”: नदी या झील के पास बैठकर थोड़ी देर प्रकृति की सुंदरता का आनंद लें – मछली पकड़ना सिर्फ एक खेल नहीं, ये उन जल जीवों की दुनिया भी है।
  • “जल संरचना की रक्षा करें”: कोई भी हानिकारक पदार्थ या प्लास्टिक पानी में न फेंके – स्वच्छ भारत सिर्फ जमीन तक सीमित नहीं!
  • “लोकल स्टोरीज सुनें”: आसपास के लोगों से उनके बचपन की मछली पकड़ने की कहानियाँ सुनिए – इससे आपको क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत समझने में मदद मिलेगी।
  • “यात्रा को यादगार बनाइए”: तस्वीरें जरूर लें लेकिन अपनी गतिविधियों से प्राकृतिक संतुलन बिगाड़े बिना!
  • “नियमों का पालन करें”: हर राज्य के अपने कानून होते हैं – जैसे असम में ब्रह्मपुत्र किनारे विशेष नियम लागू हो सकते हैं, वहीं उत्तराखंड की पर्वतीय नदियों में अलग प्रावधान मिलेंगे। हमेशा स्थानीय सूचना पट्ट पढ़ें या वन विभाग से जानकारी लें।
  • “समुदाय से जुड़ाव बढ़ाएँ”: अगर किसी गाँव या छोटे कस्बे में हैं तो वहाँ के हस्तशिल्प या लोक व्यंजन ज़रूर आज़माएँ। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलता है।
  • “यात्रा धीमी और सुकून भरी बनाइए”: जल्दी-जल्दी सब देखने की बजाय, हर पल को जिएँ – कभी-कभी सबसे मजेदार चीज़ें वही होती हैं जिनकी हमने पहले कल्पना भी नहीं की थी!
  • “सम्मान पूर्वक व्यवहार”: अन्य पर्यटकों व स्थानीय निवासियों से मित्रवत व्यवहार रखें – मुस्कुराहट हमेशा दिल जीत लेती है!
  • “प्राकृतिक कहानियाँ संजोएँ”: हर यात्रा एक नई कहानी देती है – चाहे वो पहली बार पकड़ी गई मछली हो या अचानक आई बारिश!
  • “सुरक्षा प्राथमिकता”: गहरे पानी में न उतरें अगर आप अच्छे तैराक नहीं हैं; बच्चों व बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें।
  • “फिशिंग ट्रिप = मिनी एडवेंचर!”: अपनी फिशिंग ट्रिप को छोटा सा एडवेंचर मानिए – जिसमें सीखना भी है, खुश होना भी और प्रकृति का सम्मान भी करना है!
आइए, जिम्मेदारीपूर्वक यात्रा करें और भारतीय जल जीवन व पारिस्थितिकी को सहेजने में अपना योगदान दें – ताकि आगे आने वाली पीढ़ियाँ भी इन प्राकृतिक सौंदर्य स्थलों का आनंद उठा सकें!