अंतरराष्ट्रीय सीमा विवाद और भारत में अवैध फिशिंग के कानूनी पेंच

अंतरराष्ट्रीय सीमा विवाद और भारत में अवैध फिशिंग के कानूनी पेंच

विषय सूची

अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा विवाद की पृष्ठभूमि

भारत एक विशाल समुद्री तटवर्ती देश है जिसकी सीमाएँ कई पड़ोसी देशों के साथ लगती हैं। भारत की समुद्री सीमाएँ मुख्य रूप से पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव और म्यांमार के साथ जुड़ी हुई हैं। इन देशों के साथ समुद्री सीमा निर्धारण हमेशा एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा रहा है, जो ऐतिहासिक, राजनीतिक और कानूनी पेचों से जुड़ा हुआ है।

समुद्री सीमाओं का निर्धारण क्यों महत्वपूर्ण है?

समुद्री सीमा का निर्धारण इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे मछली पकड़ने, तेल-गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों की खोज, सुरक्षा और व्यापार आदि से जुड़े अधिकार तय होते हैं। जब दो देशों के बीच समुद्री सीमाएँ स्पष्ट नहीं होतीं, तो अवैध फिशिंग जैसी समस्याएँ बढ़ जाती हैं। इससे दोनों देशों के मछुआरों में तनाव पैदा होता है और कभी-कभी ये मामले अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँच जाते हैं।

भारत के पड़ोसी देशों के साथ प्रमुख समुद्री विवाद

देश मुख्य विवादित क्षेत्र मुख्य मुद्दे
पाकिस्तान सर क्रीक क्षेत्र समुद्री सीमा रेखा और फिशिंग अधिकारों पर मतभेद
बांग्लादेश बंगाल की खाड़ी समुद्र में संसाधनों की साझेदारी एवं लाइन ऑफ डेमार्केशन
श्रीलंका पाक जलडमरूमध्य (Palk Strait) मछुआरों द्वारा अवैध प्रवेश एवं फिशिंग अधिकारों को लेकर विवाद
मालदीव/म्यांमार हिंद महासागर क्षेत्र सीमा रेखा निर्धारण एवं समुद्री संसाधनों का दोहन
ऐतिहासिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि

ब्रिटिश राज के समय से ही भारत की सीमाएँ कई जगह अस्पष्ट रही हैं। विभाजन के बाद पाकिस्तान के साथ सर क्रीक जैसे इलाकों में सीमा निर्धारण अधूरा रह गया। इसी तरह श्रीलंका के साथ पाक जलडमरूमध्य में छोटे द्वीपों और फिशिंग ज़ोन को लेकर टकराव चलता आ रहा है। बांग्लादेश के साथ भी बंगाल की खाड़ी में Exclusive Economic Zone (EEZ) को लेकर लम्बे समय तक विवाद चला, जिसे 2014 में इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल ने सुलझाया। हालांकि, स्थानीय स्तर पर मछुआरों के बीच झड़पें आज भी होती रहती हैं।
इन सभी विवादों का सीधा असर भारत और उसके पड़ोसी देशों के हजारों मछुआरों की आजीविका पर पड़ता है। अक्सर सीमाओं की अस्पष्टता की वजह से वे अनजाने में या कभी-कभी जान-बूझकर पड़ोसी देश की जलसीमा में चले जाते हैं, जिससे उनकी गिरफ्तारी और नावें जब्त होने जैसी घटनाएँ सामने आती हैं। यह सिर्फ कानूनी नहीं बल्कि मानवीय समस्या भी बन गई है।
इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा विवादों की पृष्ठभूमि समझना भारत में अवैध फिशिंग और उससे जुड़े कानूनी पेचों को समझने के लिए बहुत जरूरी है।

2. भारत में अवैध मछली पकड़ने के प्रचलन और कारण

भारत के तटीय क्षेत्रों में अवैध फिशिंग की स्थिति

भारत के तटीय इलाके जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में अवैध मछली पकड़ना एक आम समस्या बन चुकी है। यह गतिविधि खासकर उन इलाकों में ज्यादा देखने को मिलती है जहाँ अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमाएँ पास हैं, जैसे भारत-पाकिस्तान (गुजरात का कच्छ क्षेत्र) और भारत-बांग्लादेश (सुंदरबन डेल्टा)। कई बार मछुआरे बिना सीमा की जानकारी के या जानबूझकर दूसरे देश की जलसीमा में चले जाते हैं। इससे दोनों देशों के बीच कानूनी पेंच और विवाद पैदा होते हैं।

अवैध मछली पकड़ने के पीछे के सामाजिक-आर्थिक कारण

अवैध फिशिंग सिर्फ कानून तोड़ने की बात नहीं है, इसके पीछे कई सामाजिक और आर्थिक मजबूरियाँ भी हैं। इन मुख्य कारणों को समझने के लिए नीचे तालिका दी गई है:

कारण विवरण
आर्थिक दबाव मछुआरों की आमदनी सीमित होती है, जिससे वे ज्यादा मछली पकड़ने के लिए जोखिम उठाते हैं।
सीमा की अस्पष्टता समुद्री सीमाएँ स्पष्ट रूप से चिन्हित नहीं होतीं, जिससे गलती से सीमा पार हो जाती है।
प्राकृतिक संसाधनों की कमी स्थानीय जलक्षेत्र में मछलियों की संख्या कम होने पर नए इलाकों में जाने की मजबूरी होती है।
शिक्षा और जागरूकता की कमी कई बार मछुआरों को अंतरराष्ट्रीय नियमों और सीमाओं की जानकारी नहीं होती।
मध्यस्थों का दबाव मछली व्यापारियों या बिचौलियों द्वारा अधिक कमाई का लालच दिया जाता है।

स्थानीय समुदायों से जुड़ी चुनौतियाँ

अवैध फिशिंग से सबसे ज्यादा असर स्थानीय मछुआरा समुदायों पर पड़ता है। एक तरफ इन्हें कानूनी कार्रवाई का डर रहता है, दूसरी तरफ आजीविका चलाने का दबाव भी बना रहता है। जब कोई मछुआरा सीमा पार कर लेता है और पकड़ा जाता है तो उसे जेल तक जाना पड़ सकता है, जिससे पूरे परिवार को आर्थिक व मानसिक परेशानी झेलनी पड़ती है। साथ ही, समुद्री सुरक्षा एजेंसियाँ भी कभी-कभी निर्दोष मछुआरों को शक के आधार पर पकड़ लेती हैं, जिससे स्थानीय लोगों का भरोसा सरकारी सिस्टम पर कम होता जाता है। इसके अलावा, समुद्री संसाधनों का अत्यधिक दोहन करने से पर्यावरणीय असंतुलन भी बढ़ रहा है, जिससे भविष्य में आजीविका पर संकट गहराने का खतरा बढ़ गया है।

कानूनी ढांचा और मौजूदा कानून

3. कानूनी ढांचा और मौजूदा कानून

भारत में अवैध मछली पकड़ने से जुड़े मुख्य कानून

भारत में समुद्री सीमा के पास अवैध मछली पकड़ना एक गंभीर समस्या है। इसके लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने कई कानून और नीतियाँ बनाई हैं। नीचे तालिका में कुछ प्रमुख कानूनों और उनके उद्देश्य दिए गए हैं:

कानून/नीति का नाम लागू करने वाली संस्था मुख्य उद्देश्य
भारतीय मत्स्यपालन अधिनियम, 1897 केंद्र सरकार/राज्य सरकारें मत्स्य संसाधनों का संरक्षण और नियंत्रण
समुद्री मत्स्यपालन विनियमन अधिनियम (एमएफआरए) राज्य सरकारें (तटीय राज्य) समुद्र में मछली पकड़ने की गतिविधियों का नियमन
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 केंद्र सरकार/राज्य सरकारें दुर्लभ जलीय जीवों की रक्षा करना
अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून (UNCLOS) भारत सरकार/संयुक्त राष्ट्र सीमा विवाद सुलझाना, अवैध गतिविधियों पर रोक लगाना

राष्ट्रीय और राज्य स्तर की नीतियाँ

भारत के तटीय राज्यों जैसे तमिलनाडु, गुजरात, केरल आदि ने अपने-अपने समुद्री मत्स्यपालन विनियमन अधिनियम बनाए हैं। इन नीतियों के तहत:

  • मछली पकड़ने के समय और क्षेत्र: कुछ सीजन में या खास क्षेत्रों में मछली पकड़ने पर प्रतिबंध रहता है। इससे समुद्री जीवन को संतुलित रखा जाता है।
  • फिशिंग गियर पर नियंत्रण: गैर-कानूनी जाल (जैसे ट्रॉलर्स) के प्रयोग पर रोक लगाई जाती है।
  • पंजीकरण अनिवार्यता: सभी फिशिंग बोट्स का पंजीकरण जरूरी होता है। बिना रजिस्ट्रेशन के बोट चलाना अवैध है।
  • विदेशी नौकाओं पर नियम: अगर कोई विदेशी नाव भारतीय जलसीमा में पकड़ी जाती है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होती है।

अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों के अनुसार भारत में लागू नियम

भारत संयुक्त राष्ट्र के ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन’ (UNCLOS) का सदस्य है। इसके तहत:

  • विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ): भारत अपनी सीमा से 200 समुद्री मील तक EEZ घोषित करता है, जहाँ सिर्फ भारतीय नागरिक ही व्यावसायिक रूप से मछली पकड़ सकते हैं। विदेशी नाविकों को इसकी इजाजत नहीं होती।
  • सीमा विवाद: अगर दो देशों की सीमाएँ आपस में मिलती हैं, तो समझौते या अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता द्वारा विवाद सुलझाए जाते हैं। तब तक अस्थायी व्यवस्थाएँ लागू रहती हैं।
  • अवैध, बिना रिपोर्टिंग और अनियमित फिशिंग (IUU): भारत IUU फिशिंग को रोकने के लिए कई कदम उठा रहा है, जिसमें निगरानी प्रणाली और GPS आधारित ट्रैकिंग शामिल है।
सरकारी एजेंसियों की भूमिका

भारतीय तटरक्षक बल, मत्स्य विभाग और राज्य पुलिस मिलकर अवैध फिशिंग पर नजर रखते हैं। वे नियमित रूप से पेट्रोलिंग करते हैं और नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कानूनी कार्रवाई करते हैं। इससे भारत की समुद्री सीमा सुरक्षित रहती है और स्थानीय मछुआरों के हित भी संरक्षित होते हैं।

4. सीमा पार मछुआरों के मुद्दे और जमीनी हकीकत

पाकिस्तान, श्रीलंका आदि देशों के साथ सीमा विवाद और मछुआरों की गिरफ्तारी

भारत के समुद्री सीमाओं पर पाकिस्तान, श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों के साथ कई बार मछुआरे अनजाने में सीमा पार कर जाते हैं। समुद्र में स्पष्ट सीमाएं नहीं होने के कारण यह समस्या आम है। जब भारतीय मछुआरे पाकिस्तान या श्रीलंका की जलसीमा में चले जाते हैं, तो उन्हें अक्सर गिरफ्तार कर लिया जाता है। इसी तरह, अन्य देशों के मछुआरे भी भारतीय सीमा में पकड़े जाते हैं।

मछुआरों की गिरफ्तारी का कारण

देश गिरफ्तारी का मुख्य कारण प्रमुख क्षेत्र
पाकिस्तान सीमा उल्लंघन, लाइसेंस न होना कच्छ का रण, सिंधु तट
श्रीलंका आईलैंड्स के पास अवैध फिशिंग पंबन चैनल, जाफना तट

मछुआरों के अधिकार और कानूनी पेचिदगियाँ

सीमा पार गिरफ्तार किए गए मछुआरों के अधिकारों को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत होती रहती है। लेकिन भाषा, संस्कृति और कानूनी प्रक्रिया अलग होने से परिवारों को काफी दिक्कतें आती हैं। भारतीय संविधान और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत हर व्यक्ति को उचित सुनवाई का अधिकार मिलता है, लेकिन जमीनी स्तर पर यह हमेशा संभव नहीं होता। कई बार महीनों तक मछुआरे जेल में रहते हैं क्योंकि उनकी पहचान और रिहाई की प्रक्रिया लंबी हो जाती है।

क्षेत्रीय-सांस्कृतिक जटिलताएँ

मछुआरे अक्सर सीमावर्ती इलाकों से आते हैं जहां सांस्कृतिक और भाषाई मेलजोल काफी होता है। उदाहरण के लिए, गुजरात के कच्छ क्षेत्र और पाकिस्तान का सिंध इलाका सांस्कृतिक रूप से जुड़ा हुआ है। इसी तरह तमिलनाडु और श्रीलंका के उत्तरी हिस्से में तमिल समुदाय है, जिनके रीति-रिवाज, भाषा और जीवनशैली एक जैसी हैं। इन क्षेत्रों में लोग समुद्र को अपनी आजीविका का साधन मानते हैं और उनके लिए सीमाएँ उतनी स्पष्ट नहीं होतीं जितनी कागज़ों पर दिखाई देती हैं। यह सांस्कृतिक जुड़ाव कई बार कानूनी उलझनों को बढ़ा देता है क्योंकि दोनों तरफ की सरकारें सुरक्षा और कानून व्यवस्था के नाम पर सख्ती बरतती हैं।

मछुआरों की समस्याएँ: सारांश तालिका

समस्या प्रभावित देश/क्षेत्र समाधान की स्थिति
सीमा उल्लंघन से गिरफ्तारी भारत-पाकिस्तान, भारत-श्रीलंका सीमाएँ धीमी कानूनी प्रक्रिया, कूटनीतिक बातचीत जारी
भाषा एवं सांस्कृतिक बाधाएँ गुजरात-सिंध, तमिलनाडु-जाफना इलाका सरकारी मदद सीमित, स्थानीय संगठन सक्रिय
आर्थिक नुकसान व परिवार की चिंता सभी सीमावर्ती क्षेत्रीय समुदायों में समान समस्या सरकार द्वारा मुआवजा एवं सहायता प्रयास जारी

सीमा पार मछुआरों की समस्याएं केवल कानूनी ही नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी गहरी जड़ें रखती हैं। इनके समाधान के लिए दोनों देशों की सरकारों को मिलकर काम करना जरूरी है ताकि निर्दोष मछुआरे अपने घर सुरक्षित लौट सकें।

5. समाधान, सहयोग और भविष्य की रूपरेखा

सीमा विवादों का समाधान ढूंढने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग

भारत के समुद्री क्षेत्रों में सीमा विवाद अक्सर पड़ोसी देशों के साथ मत्स्य पालन अधिकारों को लेकर होते हैं। इन विवादों को सुलझाने के लिए भारत को अपने पड़ोसियों—जैसे श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान—के साथ निरंतर वार्ता करनी चाहिए। द्विपक्षीय वार्ताएं और क्षेत्रीय समझौतें दोनों देशों के मछुआरों के हितों की रक्षा कर सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लाभ

सहयोग का प्रकार लाभ
द्विपक्षीय वार्ताएं सीमा स्पष्टिकरण, मछुआरों की सुरक्षा
आर्थिक साझेदारी स्थानीय रोजगार, संसाधनों का साझा उपयोग
प्रौद्योगिकी साझा करना मत्स्य निगरानी में सुधार, अवैध फिशिंग रोकना

तकनीकी उपाय: निगरानी और ट्रैकिंग सिस्टम का महत्व

तकनीक की मदद से समुद्री सीमाओं पर अवैध गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है। GPS आधारित ट्रैकिंग डिवाइस, सैटेलाइट इमेजरी और ऑटोमेटेड अलर्ट सिस्टम से मछुआरों की नावों की वास्तविक समय में निगरानी संभव है। इससे न सिर्फ अवैध फिशिंग रोकी जा सकती है, बल्कि मछुआरों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है।

उपयोगी तकनीकी उपाय:

  • GPS ट्रैकिंग डिवाइस अनिवार्य करना
  • समुद्री गश्त बढ़ाना
  • ऑनलाइन सूचना प्रणाली विकसित करना

समुद्री जागरूकता कार्यक्रम: जानकारी ही सुरक्षा है

अवैध फिशिंग को रोकने के लिए स्थानीय मछुआरों को सीमा कानूनों, पर्यावरण संरक्षण और सुरक्षित मत्स्य पालन तरीकों की जानकारी देना जरूरी है। स्कूलों, गांवों और फिशिंग सोसाइटीज में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं। स्थानीय भाषा और सांस्कृतिक संदर्भों में जानकारी देने से जागरूकता और जिम्मेदारी बढ़ती है।

जागरूकता कार्यक्रमों के उदाहरण:
  • “सीमा पर सावधानी” अभियान तटीय इलाकों में चलाना
  • स्थानीय नेताओं द्वारा संवाद सत्र आयोजित करना
  • मछली पकड़ने के नए नियमों पर पोस्टर व पर्चे बांटना

स्थानीय समाज की भागीदारी: सामूहिक जिम्मेदारी का निर्माण

समुद्री सीमा विवाद एवं अवैध फिशिंग पर नियंत्रण पाने में स्थानीय समुदाय का सक्रिय योगदान बेहद महत्वपूर्ण है। ग्राम पंचायतें, मत्स्य संघ और स्वयंसेवी संस्थान मिलकर निगरानी समूह बना सकते हैं जो संदिग्ध गतिविधियों की रिपोर्टिंग करें। साथ ही, स्थानीय प्रशासन को नियमित संवाद बनाए रखना चाहिए ताकि नीतियां जमीनी स्तर तक प्रभावी बनें।