भारतीय तटीय इलाकों में अवैध फिशिंग: सीमा सुरक्षा और कानूनी चुनौतियाँ

भारतीय तटीय इलाकों में अवैध फिशिंग: सीमा सुरक्षा और कानूनी चुनौतियाँ

विषय सूची

1. भारतीय तटीय इलाकों में अवैध मछली पकड़ने की वास्तविकता

भारतीय तटीय क्षेत्रों में अवैध मछली पकड़ने की मौजूदा स्थिति

भारत का समुद्री तट लगभग 7,500 किलोमीटर लंबा है, जिसमें पश्चिम में गुजरात और महाराष्ट्र से लेकर पूर्व में ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु तक कई राज्य शामिल हैं। इन क्षेत्रों में मछली पकड़ना पारंपरिक पेशा है, लेकिन हाल के वर्षों में अवैध मछली पकड़ने की घटनाएँ तेजी से बढ़ी हैं। यह समस्या खासकर उन इलाकों में अधिक देखी जाती है जहाँ सीमाएं स्पष्ट नहीं हैं या निगरानी कमजोर है।

अवैध मछली पकड़ने के मुख्य कारण

कारण विवरण
सीमा विवाद पड़ोसी देशों के साथ समुद्री सीमा स्पष्ट न होने के कारण मछुआरे अक्सर गलती से या जानबूझकर दूसरे देश के जलक्षेत्र में घुस जाते हैं।
कमजोर निगरानी प्रणाली कोस्ट गार्ड और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के पास पर्याप्त संसाधन नहीं होने के कारण निगरानी कमजोर रहती है।
आर्थिक दबाव मछुआरों पर अपने परिवार का भरण-पोषण करने का दबाव होता है, जिससे वे ज्यादा मुनाफे के लिए अवैध तरीकों का सहारा लेते हैं।
तकनीकी साधनों की उपलब्धता अब आधुनिक नावें और GPS जैसी तकनीक के कारण दूर-दराज तक जाना आसान हो गया है, जिससे अवैध गतिविधियाँ बढ़ रही हैं।
प्राकृतिक संसाधनों की कमी समुद्री जीवन कम होने से पारंपरिक क्षेत्रों में पर्याप्त मछलियाँ नहीं मिलतीं, जिससे लोग अवैध ढंग से दूसरे क्षेत्रों में चले जाते हैं।

स्थानीय समुदायों और पारंपरिक मछुआरों पर प्रभाव

अवैध मछली पकड़ने का सीधा असर स्थानीय समुदायों और पारंपरिक मछुआरों पर पड़ता है। इससे उनकी आजीविका को खतरा होता है क्योंकि बड़े पैमाने पर पकड़ी गई मछलियाँ बाजार में उनकी कीमत गिरा देती हैं। साथ ही, जिन क्षेत्रों में अवैध गतिविधियाँ होती हैं वहाँ अक्सर टकराव की स्थिति बन जाती है, जिससे शांति भंग होती है। पारंपरिक मछुआरे अपनी पुरानी विधियों और सीमित संसाधनों के कारण प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाते हैं। स्थानीय भाषा में कहें तो “मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक” यानी सीमित साधनों वाले मछुआरों की दौड़ केवल उनके आस-पास ही रह जाती है, जबकि अवैध तरीके अपनाने वाले दूर तक जाकर फायदा उठा लेते हैं।

प्रभाव का सारांश तालिका:

प्रभाव क्षेत्र स्थिति/परिणाम
आजीविका पर असर पारंपरिक मछुआरों की आय घट जाती है।
सामाजिक तनाव स्थानीय समुदायों व बाहरी लोगों के बीच संघर्ष बढ़ जाता है।
पर्यावरणीय नुकसान अनियंत्रित शिकार से समुद्री जीवन को नुकसान पहुँचता है।

2. सीमा सुरक्षा पर प्रभाव

तटीय सुरक्षा के लिए अवैध फिशिंग से उत्पन्न होने वाले खतरे

भारतीय तटीय इलाकों में अवैध फिशिंग केवल आर्थिक नुकसान ही नहीं पहुंचाती, बल्कि यह देश की सीमा सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा बनती जा रही है। जब अनाधिकृत नावें भारतीय समुद्री सीमा में घुसपैठ करती हैं, तो वे मछली पकड़ने की आड़ में जासूसी, तस्करी या अन्य गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम दे सकती हैं। इससे न केवल तटीय क्षेत्रों के लोगों की आजीविका प्रभावित होती है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी सीधा असर पड़ता है।

मरीन पुलिस, कोस्ट गार्ड और अन्य सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका

इन खतरों का मुकाबला करने के लिए कई सरकारी एजेंसियां सक्रिय हैं। मुख्यतः मरीन पुलिस, भारतीय कोस्ट गार्ड और नौसेना मिलकर तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। इन एजेंसियों का कार्यभार, जिम्मेदारियां और भूमिकाएं निम्नलिखित तालिका में देख सकते हैं:

एजेंसी मुख्य जिम्मेदारियां
मरीन पुलिस स्थानीय समुद्र तटों की निगरानी, छोटी नावों की जांच और अवैध गतिविधियों पर नजर रखना
कोस्ट गार्ड समुद्री सीमाओं की पेट्रोलिंग, संदिग्ध जहाजों/नावों को रोकना, आपातकालीन बचाव कार्य
नौसेना बड़े स्तर पर सुरक्षा रणनीति बनाना एवं युद्धस्तर पर प्रतिक्रिया देना

सुरक्षा एजेंसियों के सामने चुनौतियाँ

इन एजेंसियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि लंबी समुद्री सीमा (लगभग 7,500 किलोमीटर), आधुनिक तकनीकी उपकरणों की कमी, सीमाई इलाकों में बुनियादी ढांचे का अभाव तथा कभी-कभी स्थानीय मछुआरों द्वारा दी जाने वाली अपूर्ण जानकारी। इसके अलावा, पड़ोसी देशों से आने वाली अवैध फिशिंग बोट्स अक्सर पहचान बदलकर भारतीय जलक्षेत्र में प्रवेश करती हैं, जिससे उनकी पहचान मुश्किल हो जाती है।

सीमाई तनाव और उनका असर

अवैध फिशिंग के कारण भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच सीमाई तनाव भी बढ़ सकते हैं। कई बार मछुआरों की गिरफ्तारी या नाव जब्त होने से राजनयिक संबंधों में खटास आ जाती है। इससे न केवल क्षेत्रीय स्थिरता प्रभावित होती है, बल्कि मछुआरों और उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति भी डांवाडोल हो जाती है। अतः तटीय इलाकों की सुरक्षा बनाए रखने के लिए समन्वित प्रयास और आधुनिक तकनीकों का उपयोग अत्यंत आवश्यक है।

कानूनी और नियामक ढांचा

3. कानूनी और नियामक ढांचा

भारतीय तटीय इलाकों में अवैध फिशिंग रोकने के लिए मौजूदा कानून

भारत सरकार ने अवैध फिशिंग पर रोक लगाने के लिए कई कानून और नीतियाँ बनाई हैं। इन कानूनों का उद्देश्य समुद्री संसाधनों की रक्षा करना, मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और सीमा क्षेत्रों में शांति बनाए रखना है। सबसे प्रमुख कानून एमएससी एक्ट, 1950 (The Marine Shipping and Coastal Act, 1950) है, जो तटीय क्षेत्रों में फिशिंग गतिविधियों को नियंत्रित करता है। यह एक्ट मछली पकड़ने के लाइसेंस, विदेशी नौकाओं की आवाजाही और अवैध गतिविधियों पर निगरानी के नियम तय करता है।

राज्य स्तर की पृष्ठभूमि

भारत के हर तटीय राज्य की अपनी अलग-अलग नीतियाँ और नियम होते हैं जो उनकी स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार बनाए गए हैं। राज्य सरकारें अपनी समुद्री सीमा के भीतर फिशिंग लाइसेंस जारी करती हैं, गश्ती दल नियुक्त करती हैं और अवैध मछली पकड़ने वाले जहाजों पर कार्रवाई करती हैं। नीचे दिए गए तालिका में कुछ प्रमुख राज्यों के मुख्य नियम दर्शाए गए हैं:

राज्य मुख्य कानून/नियम विशेष ध्यान
गुजरात गुजरात मैरीन फिशरीज रेगुलेशन एक्ट, 2003 नवीनतम मॉनिटरिंग सिस्टम, सख्त निरीक्षण
तमिलनाडु तमिलनाडु मैरीन फिशरीज रेगुलेशन एक्ट, 1983 सीमा सुरक्षा पर जोर, नियमित गश्ती अभियान
ओडिशा ओडिशा मैरीन फिशरीज रेगुलेशन एक्ट, 1982 मछुआरों की सुरक्षा व प्रशिक्षण कार्यक्रम
केरल केरल मैरीन फिशरीज रेगुलेशन एक्ट, 1984 स्थानीय मछुआरा समुदायों का सहयोग

अंतरराष्ट्रीय नियम और संधियाँ

भारत ने कई अंतरराष्ट्रीय समुद्री संधियों और समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए हैं ताकि समुद्र में अवैध गतिविधियों को रोका जा सके। उदाहरण के लिए:

  • यूएनसीएलओएस (United Nations Convention on the Law of the Sea): यह संधि समुद्री सीमा निर्धारण, संसाधनों के उपयोग और विवाद समाधान से संबंधित है।
  • इंडो-श्रीलंका फिशरी एग्रीमेंट: इस समझौते के तहत दोनों देशों के बीच मछुआरों की आवाजाही और सीमा उल्लंघन के मामलों में सहयोग किया जाता है।

भारत सरकार की भूमिका और चुनौतियाँ

सरकार द्वारा बनाए गए इन कानूनों को लागू करने में कई चुनौतियाँ आती हैं – जैसे सीमित संसाधन, आधुनिक तकनीक की कमी और कभी-कभी पड़ोसी देशों से आने वाली नौकाओं का ट्रैक न कर पाना। इसके बावजूद सरकार लगातार अपने नियम मजबूत करने और नई तकनीकों को अपनाने की कोशिश कर रही है ताकि भारतीय तटीय इलाकों में अवैध फिशिंग पर प्रभावी नियंत्रण रखा जा सके।

4. स्थानीय मछुआरे और ट्रांसबाउंडरी विवाद

पारंपरिक मछुआरों के सामने आने वाली चुनौतियाँ

भारतीय तटीय इलाकों में रहने वाले पारंपरिक मछुआरे कई तरह की समस्याओं का सामना करते हैं। अवैध फिशिंग और सीमा-विवाद इनकी आजीविका के लिए सबसे बड़ी चुनौतियाँ बन गई हैं। जब विदेशी नावें भारतीय जल क्षेत्र में घुस आती हैं, तो इससे यहां के मछुआरों को कम मछली मिलती है और उनकी आय पर असर पड़ता है। इसके अलावा, तकनीकी रूप से उन्नत ट्रॉलर्स द्वारा बड़े पैमाने पर फिशिंग होने से भी छोटे मछुआरों को नुकसान होता है।

सीमा-विवाद: श्रीलंका और बांग्लादेश के साथ स्थिति

भारत के श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के साथ समुद्री सीमाओं को लेकर विवाद समय-समय पर उभरते रहते हैं। खासकर तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच पम्बन चैनल में मछुआरों की गिरफ्तारी, नावों की जब्ती जैसी घटनाएँ आम हैं। ऐसे मामलों में दोनों देशों के मछुआरों को जेल जाना पड़ता है और उनकी नौकाएँ भी कई बार वापस नहीं मिलतीं।

मुद्दा भारत-श्रीलंका भारत-बांग्लादेश
सीमा विवाद पम्बन चैनल, पाक जलडमरूमध्य सुंदरबन डेल्टा क्षेत्र
मछुआरों की समस्या गिरफ्तारी, नाव जब्ती, हिंसा का डर मछली पकड़ने के अधिकार, गिरफ्तारी का खतरा
प्रभावित राज्य/क्षेत्र तमिलनाडु, पुडुचेरी पश्चिम बंगाल, ओडिशा

अहम सामाजिक-आर्थिक पहलू

इन सीमा विवादों का असर केवल कानूनी या सुरक्षा तक सीमित नहीं है बल्कि यह स्थानीय समाज और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डालता है। अधिकांश पारंपरिक मछुआरे गरीब या निम्न मध्यम वर्ग से आते हैं और वे अपनी आजीविका पूरी तरह समुद्र पर निर्भर रखते हैं। जब उनकी नावें जब्त होती हैं या वे गिरफ्तार होते हैं, तो उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो जाती है। इसके अलावा, समुद्र में बढ़ते खतरों से युवा पीढ़ी इस पेशे से दूर होने लगी है जिससे पारंपरिक ज्ञान भी खोने लगा है।

5. समाधान और नीति सिफारिशें

तकनीकी समाधान

भारतीय तटीय इलाकों में अवैध मछली पकड़ने पर नियंत्रण के लिए तकनीक का उपयोग बहुत जरूरी है। नीचे संभावित तकनीकी उपाय दिए गए हैं:

समाधान विवरण
GPS ट्रैकिंग सिस्टम मछली पकड़ने वाली नौकाओं में GPS लगाने से उनकी आवाजाही पर नजर रखी जा सकती है।
सैटेलाइट मॉनिटरिंग सैटेलाइट इमेजरी की मदद से संदिग्ध गतिविधियों को तुरंत पकड़ा जा सकता है।
ड्रोन सर्विलांस ड्रोन के जरिए समुद्री इलाकों की निगरानी आसान और सस्ती हो जाती है।
इलेक्ट्रॉनिक लाइसेंसिंग ऑनलाइन लाइसेंस प्रणाली से फर्जी या अवैध लाइसेंस जारी करने की घटनाएं घटेंगी।

संस्थागत उपाय

सरकारी और स्थानीय संस्थाओं की भूमिका मजबूत बनाना जरूरी है। कुछ प्रमुख सुझाव:

  • समुद्री पुलिस बल का विस्तार: सीमावर्ती तटीय क्षेत्रों में अधिक पुलिस चौकियां स्थापित करना।
  • स्थानीय पंचायतों को शामिल करना: ग्राम पंचायतों और मत्स्य सहकारी समितियों को निगरानी में भागीदार बनाना।
  • सीमा सुरक्षा बल (BSF) और भारतीय तटरक्षक (ICG) का तालमेल: दोनों एजेंसियों के बीच सूचना साझा करने की प्रक्रिया तेज करना।
  • फास्ट-ट्रैक न्यायालय: अवैध मछली पकड़ने के मामलों के लिए विशेष अदालतें बनाना ताकि मामलों का शीघ्र निपटारा हो सके।

सामाजिक पहल एवं जागरूकता कार्यक्रम

तटीय समुदायों में जागरूकता बढ़ाने और उन्हें समाधान का हिस्सा बनाने के लिए:

  • शिक्षा अभियान: मछुआरों को कानूनी नियमों, पर्यावरणीय नुकसान और वैकल्पिक आजीविका के बारे में जानकारी देना।
  • महिला स्वयं सहायता समूह: महिलाओं को भी इस मुहिम में शामिल कर मछुआरा परिवारों की आय बढ़ाने के नए साधन उपलब्ध कराना।
  • युवा सहभागिता: युवा संगठनों को समुद्री सुरक्षा और संरक्षण अभियानों से जोड़ना।

भविष्य के लिए रणनीतियाँ और नीति सुझाव

  • क्षेत्रीय सहयोग: भारत को अपने पड़ोसी देशों जैसे श्रीलंका, बांग्लादेश और मालदीव के साथ मिलकर समुद्री सीमा सुरक्षा समझौते करने चाहिए ताकि अवैध मछली पकड़ने पर सामूहिक कार्रवाई हो सके।
  • स्थायी मत्स्य पालन नीति: केंद्र एवं राज्य सरकारें मिलकर एक टिकाऊ मत्स्य पालन नीति बनाएँ जिसमें पर्यावरण संरक्षण, रोजगार और खाद्य सुरक्षा सभी शामिल हों।
  • प्रोत्साहन योजनाएँ: वैध मछुआरों को सब्सिडी, बीमा एवं प्रशिक्षण जैसी सुविधाएँ दी जाएँ ताकि वे गैर-कानूनी तरीकों का सहारा न लें।
  • मॉनिटरिंग एंड इवैल्यूएशन सेल: हर जिले में एक निगरानी कक्ष बने जो अवैध गतिविधियों की रिपोर्टिंग, विश्लेषण और कार्रवाई सुनिश्चित करे।
  • पारदर्शिता एवं डेटा साझेदारी: सभी संबंधित एजेंसियों के बीच डेटा साझा करने की व्यवस्था बने जिससे निर्णय लेने में आसानी हो।
इन समाधानों के जरिए भारतीय तटीय इलाकों में अवैध मछली पकड़ने पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है और तटीय सुरक्षा मजबूत बनाई जा सकती है। ये उपाय न सिर्फ कानूनी रूप से कारगर होंगे बल्कि स्थानीय समुदायों को भी लाभ पहुंचाएंगे।